Wednesday, July 7, 2010

माँ

मेरे राजा आया इस गजब की दुनिया में
हर बुरी नजर से में तुजे
बचाऊ ,
चमकती इस वादियों में
ना खो जाना तुम,
भोले भाले दिखते
ना समजो , इनको तुम भोला रे !
दीपक जलाउगी , तेरी राह में
कांटे ना हो तेरी राह में
फूल ही फूल तेरे लिए ,
सजाऊ ,
माँ हूँ तेरी
ममता की चद्दर ही बिछावु

Saturday, July 3, 2010

महगाई

भारत में महगाई खुजली की तरह बढ़ रही है ,जो बढती ही जाती है .गरीब बेचारा क्या करेगा ? यह कहना ठीक नहीं है क्योकि अब तो सभी गरीब हो ही जायेगें "गरीब प्रधान देश "नया नाम सोच लिया है. आम आदमी गुटली की तरह फ़ेंक दिया जायेगा किसी को पता भी नहीं चलेगा । विकास के काम हो रहे है कागज़ पर , रास्ते में गड्डे खोदे जा रहे है और सरकार खुद हवाई जहाज में सभी के दुरदर्सन कर रही है .मिटटी का तेल आसमान छूती महगाई से भभक रहा है ,आम आदमी के पास न गैस हे ,ना दाल-चावल , बच्चो को पढ़ाएंगे की खिलाएंगे ,ठेलियां भर कर पैसा लेके जाओ तो मुट्ठी भरकर राशन आता है .मिडिया वाले अगर किसी का साक्षात्कार भी महगाई के बारे में दिखाते है तो ऐसे जो आसानी से खरीद कर अपना परिवार पालते हो ,अच्छे घर में रहते हो ऐसे समाचार से सरकार को क्या सन्देश दे रहे है ? महगाई का ये भुत सबको मार डालेगा ?क्या इसका कोई उपाई मिला नहीं ? या गायब कर दिया ? "वैष्णव जन तो तेने रे कहिये जो पीड पराई जाने रे" -अब यही गाना--------
केवल दूसरों को जो पीड़ा देगा वही मानुष बन गया रे ! ---हाय ये महगाई --तू आई तो बन गया नया अफसाना --क्यों करे ? परेशान ! सबको । जीना हुआ बेहाल इन्सान का अब कोई बचाओ जालिम महगाई से भाई थक गए सारे!

साहित्य क्यों ?

समाज का आइना है साहित्य .साहित्य में अपने आसपास घटित होने वाली हर घटना का हुबहू चित्र हमें दर्ष्टिगत होता है .लेकिन दुनिया बड़ी तेजी से आगे बढ़ रही है ,एक ओर जहाँ स्पर्धा में कौन कितना आगे निकलता है , धन दोलत शोहरत कमाने के लिए परिवार से ,समाज से उतना ही दूर होने लगा .स्वार्थ .ईर्ष्या, अमानवीयता ,संकुचितता उतनी ही पनपने लगी .साहित्य हमें जीने का तरीका शिखाता है ,हमें संस्कार देता है , संवेदना को जाग्रत करता है , मनुष्य के पास सब कुछ होते हुए भी वह बिलकुल खाली है कोरे कागज़ की तरह .मैथिलि शरण गुपतजी ने ठीक ही कहा है -"वही मनुष्य है जो मनुष्य के लिए मरे " कई बार लोग सवाल करते है -आखिर कबीर ,तुलसी, मिरां ,सूरदास पढ़कर कया करेंगे वो नौकरी तो नहीं देते इतना पढने के बाद भी बेकारी मिलती है मेरा तो यह मानना है की इस देश के सभी विद्यार्थियों के पाठयक्रम में साहित्य अनिवार्य रूप से होना चाहिए क्योकि उसके माँ बाप के पास समय नहीं है , उससे बात करने का ,संस्कार देने का ,अच्छाई और बुराइ का ज्ञान देने का टेलिविज़न से ,अपनी आया से ,अपने दोस्तों से जो भी थोडा बहुत शिख कर अपने जीवन की नैया चलाता है .विज्ञानं,तकनिकी ,अर्थ , गणित आदि से एक बुद्दिजीवी के आधार पर उसकी गिनती हो सकती है लेकिन इस संसार में मनुष्य के जीवन की सफलता उसे तभी मिल सकती है जब सही में अर्थ में वह मनुष्य बन जायेगा .साहित्य की " सत्यम शिवम् सुन्दरम "की भावना उसे नयी राह दिखा सकती है .

Thursday, April 22, 2010

दोहरे लोग

अच्छे भी, बुरे भी लोग इस दुनिया में रहते है ,लेकिन कोण अच्छा और कोण बुरा पता नहीं चलता है ,हँस के दो चार बाते करके हमें अपना बनाकर हमें ही धोका देने वाले लाखो लोग है। जो सवार्थी है वह जयादा सावधान हो कर काम निकल ही लेते है ,इन दोहरे लोगो का पर्दाफाश किया जाई,भोले भाले लोगो का कोई काम नहीं इस दुनिया में अपना रोब जमाव ,काम बनावो ये केवल दोहरे लोगो का समय है । इन्सान अपनी मर्यादा भूल गया ,अपना धर्म भूल गया ।

Wednesday, April 21, 2010

किनारा

बहती नदिया की धारा तो हूँ पर किनारा कहाँ
बारिश की धारा तो हूँ पर सहारा कहाँ !
बिजली बनकर गिरती तो हूँ पर उजाला कहाँ !
उम्र भर सब को संजोती तो हूँ पर मेरे कहाँ !
कल्पना, बस किनारा तो है, मंझिल कहाँ !
उस किनारे के मिलन की आस तो है ,पर अब किनारा कहाँ !!!!!!!!!

Sunday, April 18, 2010

स्त्री

घर और बाहर का लम्बा सफ़र करते स्त्री के जीवन में काफी बदलाव आया है ,अपनी कमाई से परिवार को आर्थिक सहारा दे रही है ,यानि वह दोहरा जीवन व्यतीत कर रही है ,दफ्तर में चाहे वह कितना महत्वपूर्ण कार्य करके आने के बाद भी उसकी उपेक्षा होती है,ऑफिस में भी मानसिक एवं शरीरिक शोषण होता है । कामकाजी महिलाये घर और बाहर दोनों जगह सामंजस्य बिठाने का प्रयाश करती दिखाई देती है । लड़ाई अभी कहाँ ख़तम हुई है । जब स्त्री के कार्य का हिस्सा गिना जायेगा ,तब मानसिक रूप से सफल एवं सार्थक हो सकता है ।

साथी

बरस जाओ बारिस की तरह
हम भी, ना रहे, हम
भीगे तन ,मन
जहाँ बस प्यार ही प्यार हो
नफरत की ना दीवार हो
साथ तेरा रहे यूँ ही
साथी मेरे
जनम जनम